कविता : मेरी ज़िंदगी के रंग - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

  
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 2 मार्च 2025

demo-image

कविता : मेरी ज़िंदगी के रंग

मेरा चरित्र और मेरा चेहरा,

समाज मेरी हैसियत क्यों बताता?

मेरे अंदर किताबी कीड़े का गुण नहीं,

मेरे लंबे बाल मेरे गुणों को है दर्शाता,

छोटा कद, रंग सांवला और गोल शरीर,

बस इतने में मेरा भविष्य दिख जाता?

इंसान हम भी हैं, गलतियां सभी से होती हैं,

मगर तानों का पिटारा हमारे लिए खुल जाता?

मायका हो या हो ससुराल वाला घर,

लड़कियों की इच्छा क्यों मारी जाती?

रिश्ते निभाने है तो चुप रहना होगा,

गलती न हो फिर भी अपमान सहना होगा,

मगर ये अपमान सिर्फ लड़कियाँ ही क्यों सुने?

बच्चे सफल हो जाएं तो पापा का नाम,

और गलतियाँ करे तो फिर माँ बदनाम,

इस दोहरे चरित्र को बेनकाब करना होगा,

लड़कियों को भी बराबरी का हक देना होगा॥




POOJA%20GOSWAMI


पूजा गोस्वामी

रोलियाना, उत्तराखंड

चरखा फीचर्स

कोई टिप्पणी नहीं:

undefined

संपर्क फ़ॉर्म

नाम

ईमेल *

संदेश *